अब आप सबने इतना सिर पर चड़ा दिया है तो कुछ लिखने का प्रयत्न किया जाये :P|
आज से कुछ साल पहले तक मैं (हिन्दी के मामले में) काफी हद तक कट्टर था| मुझे लगता था कि अगर भारत में ही हिन्दी का सम्मान नहीं होगा आने वाले सालों में यह भाषा तकरिबन खतम हो जायेगी| यह बात तब कि है जब मुझे globalization के बारे में कुछ खास मालुम नहीं था और इतिहास पढ़ते-२ अँगरेज़ एवम अंग्रेजी से मुझे खुन्नस हो गयी थी|उस बात को कम से कम अब ८-९ वर्ष हो गए हैं और इन सालों में जितना 'official' काम मैंने english में किया है, पहले कभी नहीं किया होगा| फिर भी अब, इस समय अगर मुझसे पुछा जाये कि इस भाषा का भविष्य क्या है तो मैं यह कतई नहीं कहूँगा कि यह भाषा 'मर' जायेगी| हाँ, यह हो सकता है कि इसके 'structure' में कुछ बदलाव आजाये बलकि मैं तो यह चाहूँगा कि हिन्दी और 'flexible' हो क्योंकि कोई भी भाषा कि जीवन-रेखा कि लम्बाई इस तथ्य पर निर्भर करेगी कि वोह कितनी 'flexible' है तथा अपने अन्दर क्या-२ 'accomodate' कर सकती है| मानव सभ्यता के आरम्भ से ना जाने कितनी भाषाएँ काल का ग्रास बन गयी हैं और जैसे -२ समय चक्र बढ़ता जाएगा ना जाने कितनी भाषाएँ काल का ग्रास बन जाएँगी| आज से २०० वर्ष पहले तक 'english' नामक भाषा का विश्व स्तर पर देखा जाये तो नामो निशाँ तक नही था लेकिन आज वो किस 'position' पर है सबको मालुम है| इसके पिछे १ महत्वपूर्ण कारण 'obviously' यह है कि , जिसका पैसा उसकी बोली| लेकिन १ और करण यह है कि 'english' अब 'imperial english' नहीं है बलकि 'hinglish', 'chinglish' etc etc का mixture बन गयी है तथा इस नयी भाषा को बोलते समय लागों को यह नहीं लगता कि वोह किसी ओर कि भाषा को गले लगा रहा है। और आज हमे लगता है कि हिन्दी खतम हो जायेगी-'its not coz english is eating it up but coz theres is a new language called hinglish'| साहित्य कि दृष्टि से देखा जाये तो मैं मानता हूँ कि यह गलत है लेकिन अगर इतिहास कि दृष्टि से देखा जाये तो 'obviously its something natural'.
१९६५ के हिंन्दिभाषियों के 'chauvinism' एवम अदूरदर्शिता के कारण हिन्दी दिलों को जोड़ने कि जगह बाँटने का काम कर गयी। लेकिन जिस तरह 'english' दुनिया भर में फैल रही है उस तरह हिदी अब कम से कम भारत में वह स्थान पा रही है जो स्वतंत्रता के बाद 'non-hindi speaking' राज्यों पर 'उनकी नज़रों में' थोपा जा रहा था। मैं इस बात को नहीं नकार रहा कि दक्षिण भारतीय राजनितिक दलों ने हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने वाले निर्णय को 'आर्यन invasion theory' से जोड़ के अपना उल्लू सीधा किया; लेकिन इसका मौका उन्हें दिया किसने?? क्या कारण था कि राजगोपालाचारी जैसे व्यक्ति जो आरम्भ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने के पक्श में थे बाद में 'status-quo' बनाये रखने के समर्थक बन गए?? क्या कारण है कि दक्षिण भारत में 'english' बोलने में लोगों को आपत्ति नही है लेकिन हिन्दी अछूत है/ 'थी'?? इन सब सवालों के जवाब में फिलहाल मैं एक ही चीज़ कहूँगा - अगर शुरुराती दिनों में ज़ल्दबाजी नहीं कि गयी होती तो आज का माहौल कुछ ओर होता। अगर दक्षिण के लोगों को विश्वास में लिया होता कि हिन्दी के कारण 'central jobs' में उन्हें फर्क नहीं पढेगा तो इतना गहरा 'साऊथ-नॉर्थ' 'divide' आज नहीं होता। फिर भी किसी ने कहा है जो होता है अच्छे के लिए होता है - हिन्दी आधिकारिक नहीं होने के कारण आज हम 'globalization' के फायदे उठा पा रहे हैं साथ ही इन फायदों के कारण हिन्दी के कट्टर विरोधी (hopefully) कम हो गए हैं।
वैसे मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहता हूँ कि इस विषय के ऊपर लिखने कि मन में क्यों आयी...आज से कुछ साल पहले तक मैं (हिन्दी के मामले में) काफी हद तक कट्टर था| मुझे लगता था कि अगर भारत में ही हिन्दी का सम्मान नहीं होगा आने वाले सालों में यह भाषा तकरिबन खतम हो जायेगी| यह बात तब कि है जब मुझे globalization के बारे में कुछ खास मालुम नहीं था और इतिहास पढ़ते-२ अँगरेज़ एवम अंग्रेजी से मुझे खुन्नस हो गयी थी|उस बात को कम से कम अब ८-९ वर्ष हो गए हैं और इन सालों में जितना 'official' काम मैंने english में किया है, पहले कभी नहीं किया होगा| फिर भी अब, इस समय अगर मुझसे पुछा जाये कि इस भाषा का भविष्य क्या है तो मैं यह कतई नहीं कहूँगा कि यह भाषा 'मर' जायेगी| हाँ, यह हो सकता है कि इसके 'structure' में कुछ बदलाव आजाये बलकि मैं तो यह चाहूँगा कि हिन्दी और 'flexible' हो क्योंकि कोई भी भाषा कि जीवन-रेखा कि लम्बाई इस तथ्य पर निर्भर करेगी कि वोह कितनी 'flexible' है तथा अपने अन्दर क्या-२ 'accomodate' कर सकती है| मानव सभ्यता के आरम्भ से ना जाने कितनी भाषाएँ काल का ग्रास बन गयी हैं और जैसे -२ समय चक्र बढ़ता जाएगा ना जाने कितनी भाषाएँ काल का ग्रास बन जाएँगी| आज से २०० वर्ष पहले तक 'english' नामक भाषा का विश्व स्तर पर देखा जाये तो नामो निशाँ तक नही था लेकिन आज वो किस 'position' पर है सबको मालुम है| इसके पिछे १ महत्वपूर्ण कारण 'obviously' यह है कि , जिसका पैसा उसकी बोली| लेकिन १ और करण यह है कि 'english' अब 'imperial english' नहीं है बलकि 'hinglish', 'chinglish' etc etc का mixture बन गयी है तथा इस नयी भाषा को बोलते समय लागों को यह नहीं लगता कि वोह किसी ओर कि भाषा को गले लगा रहा है। और आज हमे लगता है कि हिन्दी खतम हो जायेगी-'its not coz english is eating it up but coz theres is a new language called hinglish'| साहित्य कि दृष्टि से देखा जाये तो मैं मानता हूँ कि यह गलत है लेकिन अगर इतिहास कि दृष्टि से देखा जाये तो 'obviously its something natural'.
१९६५ के हिंन्दिभाषियों के 'chauvinism' एवम अदूरदर्शिता के कारण हिन्दी दिलों को जोड़ने कि जगह बाँटने का काम कर गयी। लेकिन जिस तरह 'english' दुनिया भर में फैल रही है उस तरह हिदी अब कम से कम भारत में वह स्थान पा रही है जो स्वतंत्रता के बाद 'non-hindi speaking' राज्यों पर 'उनकी नज़रों में' थोपा जा रहा था। मैं इस बात को नहीं नकार रहा कि दक्षिण भारतीय राजनितिक दलों ने हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने वाले निर्णय को 'आर्यन invasion theory' से जोड़ के अपना उल्लू सीधा किया; लेकिन इसका मौका उन्हें दिया किसने?? क्या कारण था कि राजगोपालाचारी जैसे व्यक्ति जो आरम्भ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने के पक्श में थे बाद में 'status-quo' बनाये रखने के समर्थक बन गए?? क्या कारण है कि दक्षिण भारत में 'english' बोलने में लोगों को आपत्ति नही है लेकिन हिन्दी अछूत है/ 'थी'?? इन सब सवालों के जवाब में फिलहाल मैं एक ही चीज़ कहूँगा - अगर शुरुराती दिनों में ज़ल्दबाजी नहीं कि गयी होती तो आज का माहौल कुछ ओर होता। अगर दक्षिण के लोगों को विश्वास में लिया होता कि हिन्दी के कारण 'central jobs' में उन्हें फर्क नहीं पढेगा तो इतना गहरा 'साऊथ-नॉर्थ' 'divide' आज नहीं होता। फिर भी किसी ने कहा है जो होता है अच्छे के लिए होता है - हिन्दी आधिकारिक नहीं होने के कारण आज हम 'globalization' के फायदे उठा पा रहे हैं साथ ही इन फायदों के कारण हिन्दी के कट्टर विरोधी (hopefully) कम हो गए हैं।
हिन्दी blogosphere में कई बार मैंने लोगों को यह शिक़ायत करते हुए देखा है कि आजकल 'ढंकी' हिन्दी विविध-भारती के अलावा कहीँ नहीं मिलती लेकिन मैं उनसे एक बात जानना चाहूँगा... आप ढंकी हिन्दी किसे बोलते हैं?? वह जो आज से ५०-१५० वर्ष पहले परिभाषित करी गयी थी (sanskritization of hindi) या जो आज से ८००-९०० वर्ष पहले अस्तित्त्व में आयी थी... हिन्दुस्तानी?? और सही मायने में कहा जाये तो मेरे ख़्याल से हर १ जना अपनी अलग हिन्दी बोलता है। और अगर आप देवनागरी लिपि पर 'senti' हैं तो मैं यह कहना चाहूँगा कि यह लिपि भी मात्र १००० वर्ष पुरानी होगी। यह सच है कि 'change' या बदलाव मुश्किल होता हिया लेकिन यह भी एक सच है कि बदलाव ही ऐसी चीज़ है जो हमेशा स्थिर रहती है!!!
Sources:
mixture of sites on www
'Sccop' by कुलदीप नायर
Further Reading:
Hegemony of Hindi: ToI editorial where author talks about HEGEMONY of Hindi; biggest IRONY being he/ she is writing in ENGLISH :). Though what is written is somewhat true but its something natural according to me. But as I said earlier...what English is doing in the world, Hindi is doing in India...!!! And its good for the sake of the Nation.
The Hindi Haters: A blog on IBNLive. See the comments and you will realize why i gave this link.
11 टिप्पणियां:
महोदय क्या आप मुझे बता सकते हैं कि gyan को कैसे लिखा जा सकता है
सबसे पहले 'फ़्लाइंग डेथ' के प्रश्न का उत्तर:
'ज्ञान' लिखने का तरीका इस बात पर निर्भर करता है कि आप हिन्दी लिखने के लिये कौन सा टूल (साफ़्टवेयर) प्रयोग कर रहे हैं। उदाहरण के लिये मै जिस टूल का उपयोग करता हूँ, वह एक लिप्यंतरण(Phonetic transliteration) पर आधारित टूल है और उसमे GYaan टाइप करने से 'ज्ञान' लिखा जाता है। आप कौन सा टूल प्रयोग करते हैं?
आप ने अंगरेजी के बारे में सत्य बाते लिखी हैं किन्तु सत्य तक जाते-जाते भटक गये हैं। अंगरेजी के प्रसार का कारण 'हिंग्लिश' या चिंग्लिश' को नही दिया जा सकता। अंगरेजी के प्रसार का असली कारण यह है कि पहले दुनिया में ब्रिटेन का प्रभुत्व रहा और उसके पतन के बाद अमेरिका का। दुनिया उसी की भाषा बोलती है जिसके पास शक्ति होती है। भारत इसका जीता-जागता उदाहरण है।
आपका यह कथन भी अर्ध-सत्य ही है कि १९६५ में हिन्दी वालों के 'चौवनिज्म' के कारण हिन्दी को नुकसान हुआ। यह अंगरेजी गुलामों का गढ़ा हुआ कुतर्क है। सच्चाई यह है कि हिन्दी वालों में कोई स्वाभिमान ही नही है, 'चौवनिज्म' तो बहुत दूर की बात है।
This post cant be seen properly on firefox...reason may be, you are 'justifying' the post, which usually create problem with firefox..
1st of all मैंने यह नही कहा कि 'english' के प्रसार का कारण 'hinglish' etc. है; मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि 'due to its flexibility of accommodating words from different languages english has now become a language with a VAST vocab and more acceptable'
@nitin i m also using firefox....!!!!
शुभम आपकी चिन्ता और बोध दोनों वाजिब हैं.. हिन्दी को लचीला होना होगा .. लम्बे समय तक जीवित रहने के लिये..
@abhay thanx 4 supporting :P
लचीले पेड़ ही आँधी में खड़े रहते हैं । हिन्दी को भी लचीला होना होगा ।
घुघूती बासूती
अगर हिंदी लचीली बनी रहे और हिंदी को बचाने वाले नामवरों की कुदृष्टि से बची रहे तो इसे कोई खतरा नहीं।
Thanks for sharing
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