बुधवार, अक्तूबर 11, 2006

दोहे का अर्थ

यहाँ विचरण करने वाले प्राणियों से मैं एक साहित्यिक प्रश्न पुछना चाहता हूँ:
दोहे का मतलब क्या होता है??
ऐसी दो पंक्तियाँ जो कुछ सीख दें अथवा (messagge convey) करें या कोई सी भी दो (rhyming) पंक्तियाँ!!!
जैसे कि दोहावली क्र॰ ३ में श्री बेंगाणी जी ने टिप्पणी करी है "यह तो दोहा बना नहीं"तो यह बात उन्होने किस संदर्भ में कही है??
क्या इसे (दोहावली क्र॰ ३ को) छंद कहा जा सकता है??
कविता और छंद तो शायद एक ही चीज़ है?? अथवा या फिर अलग??

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

क्षमा करें मित्र, मेरा आशय आपको ठेस पहुंचाना कतई नहीं था. आपके पहले दो दोहो के मुकाबले तीसरा पता नहीं क्यों सही नहीं लगा, इसलिए लिख दिया. मैं न तो ज्ञाता हूं न समिक्षक, अतः दिल पर न ले और लिखना जारी रखे.

अनुनाद सिंह ने कहा…

कविता की काया शब्दों से बनती है और शब्द वर्णों से। इस दृष्टि से कविता अनेक तरह के छन्दों में लिखी जाती रही है- जैसे चौपाई, दोहा, कुण्डलिया, सवैया, छप्पय, सोरठा आदि।

दोहा चार चरण वाली कविता है। इन चार चरणों में क्रमशः १३, ११, १३, ११ मात्राएँ होती हैं। किसी शब्द में कितनी मात्राएँ है, इसकी गिनती विधिवत की जाती है। मात्राएँ कम या अधिक होने पर उस कविता को वांचने से ही अटपटी लगती है। मात्रा की गिनती करने से गलती स्पष्ट हो जाती है। अधिक जानकारी के लिये यहाँ देखें:
http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/Chhand.htm

Shubham Lahoti शुभम् लाहोटी ने कहा…

अरे बाप रे!!!!!!

Udan Tashtari ने कहा…

अब अनुनाद भाई ने तो आपको लिंक दे ही दिया है फिर भी इस पर भी नजर डाल लेना, शायद मददगार साबित हो :)
http://udantashtari.blogspot.com/2006/10/blog-post_10.html