शुक्रवार, अक्तूबर 06, 2006

दोहावली क्र॰ ३

ISI की क्या ज़रुरत है, जब घर में अरूंधती रहती है।
समाज सुधारक बन के, गद्दारों की भीड़ बोलती है।।

वैधानिक चेतावनी:
मैं जिन्हे दोहे और कविता कहता हूँ उन्हे दोहे और कविता कहना सेहत एवं साहित्य के लिए हानिकारक है

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

दोस्त यह तो दोहा बना नहीं. फिर से कोशीष करें.

अनुनाद सिंह ने कहा…

दूसरी पक्ति के लिये शायद यह बेहतर हो:
समाज सुधारक का चोगा पहनकर, गद्दारों की बात कहती है।