दिल और दिमाग से
गुरुवार, अक्तूबर 12, 2006
दोहावली क्र॰ ४
राह में काँटे हैं बिछे, लहु-लुहान पैर होये ।
फिर भी आगे जो बढे़, मलहम ज़रुर मिले।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें